Sunday, June 25, 2017

विधवा माँ और उसका बेटा ।



एक घर के करीब से गुज़र रहा था अचानक मुझे घर के अंदर से एक दस साल के बच्चे की रोने की आवाज़ आई - आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर बच्चा क्यों रो रहा है यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका - अंदर जा कर मैने देखा कि माँ अपने बेटे को धीरे से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती - मै ने आगे हो कर पूछा ऑन्टी क्यों बच्चे को मार रही हो जबकि खुद भी रोती हो..... उसने जवाब दिया की आप तो जानते ही होंगे कि इसके पिताजी का देहांत हो गया है। हम बहुत गरीब हैं। उनके जाने के बाद मैं फैक्ट्री में मजदूरी करके घर और इसके पढ़ाई का खर्च बहुत कठिनाई के साथ उठाती हूँ यह  देर से स्कूल जाता है और देर से घर आता है - जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की यूनिफार्म गन्दी कर लेता है - मै ने बच्चे और उसकी माँ को थोड़ा समझाया और चल दिया.....
कुछ दिन ही बीते थे...एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से सब्जी मंडी गया - तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था - क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता - मै यह माजरा देख कर परेशान हो रहा था कि चक्कर क्या है - मै उस बच्चे को चोरी चोरी फॉलो करने लगा - जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर बेचने लगा - मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी , ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ कि अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी , उसने आते ही एक जोरदार धक्का मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया - वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली - भला हो उस दुकानदार का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस ने बच्चे को कुछ नहीं कहा - थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से दूसरी दुकानों से कम कीमत की थी इसलिए जल्द ही बिक गयी और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाले की दुकान में घुस गया और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की ओर चल पड़ा । कौतूहल वश मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था - बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धोया और स्कूल चल दिया - मै भी उसके पीछे स्कूल चला गया - जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था - जिस पर अध्यापक जी ने डंडे से उसे खूब मारा - मैने जल्दी से जाकर अध्यापक जी को मना किया कि छोटा बच्चा है इसे मत मारो - अध्यापक कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल समय पर आए और कई बार मै इसके घर पर भी सुचना दे चुका हूं - खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा - मैने उसके शिक्षक का मोबाइल नम्बर लिया और घर की ओर चल दिया घर पहुंच कर ज्ञात हुआ कि जिस कार्य के लिए मैं सब्ज़ी मंडी गया था उसको तो भूल ही गया। दूसरी ओर बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई - सारी रात मेरा सर चकराता रहा  - सुबह उठकर जल्दी से तैयार हुआ और ईश्वर की आराधना के उपरांत शिक्षक महोदय को मोबाइल पर फोन कर कहा कि हर हालत में तुरंत सब्जीमंडी पहुंचें। शिक्षक महोदय ने मेरे अनुरोध को स्वीकार किया। बच्चे का स्कूल जाने का समय हुआ और बच्चा घर से सीधा सब्जीमंडी अपनी नन्ही सी दुकान की व्यवस्था करने चल पड़ा। मै ने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि ऑन्टी आप मेरे साथ चलो मै तुम्हे बताता हूँ आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है - वह फौरन मेरे साथ क्रोध मे यह बड़बड़ाते हुए चल पड़ीं कि आज उस लड़के को छोडूंगी नहीं उसे आज बहुत मार मारूंगी। मंडी में बच्चे के शिक्षक भी आ चुके थे। हम तीनों सब्जीमंडी के एक स्थान पर आड़ लेकर खड़े हो गए जहाँ से उस बच्चे को देखा जा सकता था लेकिन वो हमें नहीं और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। प्रतिदिन की भाँति उसको आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया। मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो देखता हूँ कि वो बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर रो रही थी। मै ने स्कूल के अध्यापक जी की ओर देखा तो बहुत करुणा के साथ उनके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने बहुत बड़ा  अपराध किया हो और आज उन को अपनी गलती का पछतावा हो रहा हो। मैंने दोनों को सांत्वना देते हुए वहां से विदा किया। उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और अध्यापक जी भी सजल नेत्रों के साथ स्कूल चले गए। पूर्व की भाँति बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने कपडे देते हुए कहा कि बेटा आज कपड़ों के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। बच्चे ने उन कपड़ों को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया - आज भी एक घंटा लेट था वह सीधा आचार्य जी के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर मार खाने के लिए अपने हाथ आगे कर दिए कि शिक्षक डंडे से उसे मार ले। आचार्य अपनी कुर्सी से उठे और बच्चे को गले लगाकर सुबक पड़े कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर नियंत्रण ना रख सका। मै ने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में कपडे हैं वो है वह किसके लिए है - बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ फैक्ट्री में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं। कोई कपडा सही ढंग से तन ढांपने वाला नहीं और और हमारे माँ के पास पैसे नही हैं इसलिये इस दिवाली पर अपने माँ के लिए यह सलवार कमीज का कपडा खरीदा है। मैंने बच्चे से पूछा तो यह कपडा अब घर ले जाकर माँ को दोगे ? परंतु उसके उत्तर ने मेरे और उस बच्चे के शिक्षक के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी.... बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं ।

.... आचार्य जी और मैं यह सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे होली-दिवाली जैसी खुशियों को मानाने के लिए कठोर परीक्षाओं का परिश्रम के साथ सामना करते रहेंगे आखिर कब तक!

क्या ईश्वर ने इन जैसे गरीब अनाथ बच्चों और विधवाओं को त्योहारों को प्रसनन्ता के साथ मनाने का कोई हक नहीं दिया? क्या हम चन्द रुपयों का मन्दिर में चढ़ावा या दान दे कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से हट सकते हैं?
क्या हम अपनी खुशियों के अवसरों पर अपनी व्यर्थ की इच्छाओं को कम कर थोड़े पैसे, थोड़ी खुशियां उनके साथ नहीं बाँट सकते?!!!
सोचना ज़रूर ।

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